यदुकुल शिरोमणि महाबली वीर लोरिक के जयंती पर किया कोटि-कोटि नमन

यदुकुल शिरोमणि महाबली वीर लोरिक के जयंती पर किया कोटि-कोटि नमन



अलौली खगड़िया। 


देश बचाओ अभियान फरकिया  मिशन के तत्वाधान में यदुकुल शिरोमणि महाबली वीर लोरिक का जयंती पर कृतज्ञ यदुकुल वंशी ने संपर्क कार्यालय में कोटि-कोटि नमन कर याद किया।



इस अवसर पर अभियान के संस्थापक अध्यक्ष किरण देव यादव ने कहा कि वीर लोरिक सच्चे अर्थों में यदुकुल शिरोमणि, महाबली, ऐतिहासिक लोकनायक, महान यदुवंशी राजा,महावीर योद्धा, आमजन हितैषी एवं अन्यायी सामंती ताकतों के कट्टर विरोधी हूणहंता थे। वे अपार बल, युद्ध कौशल एवं शौर्य के बल पर उत्तर भारत में सुविख्यात थे। वे राजा भोज के वंशज माने जाते हैं। वे विदेशी आक्रमणकारी हूणों को पराजित कर मातृभूमि आर्यावर्त भारत को सुरक्षित रखे। उन्होंने राजा पृथ्वीराज चौहान को भी युद्ध में पराजित किए। उन्होंने बेंगठा चमार के आतंक से दलदल में भयंकर युद्ध कर पराजित कर प्रजा को मुक्त कराएं।



इनका अहीर मनिहयार कुल यादव जाति में उत्तर प्रदेश के बलिया के निकट गऊरा गांव के पंवार गोत्र के क्षत्रिय यदुवंशी अहीर घराने में हुआ था। इनके सुप्रसिद्ध पहलवान पिता कुआ एवं धर्मपरायण माता खुल्लनी उर्फ प्रगल्भा थे। वीर लोरिक बहुत सुंदर, बहादुर, बलशाली, रोबदार मूंछें, 8 फीट लंबे ऊंचे, भीमकाय शरीर, 85 मन के वजनी तलवार रखते थे। वे माता भवानी के भक्त थे। उनके बड़े भाई का नाम सवरू था।

 अघोरी गढ़ के राजा मेहर सिंह के सातवीं पुत्री मंजरी उर्फ चंदा के पवित्र प्रेम में बंध कर सुरक्षा हेतु राजा मोलागत के बुरी नजर से बचाव हेतु युद्ध जीत कर लाये। तथा मंजरी के प्रणय निवेदन पर एक पहाड़ के चट्टान को एक ही वार में दो टुकड़े में चीरकर  प्रेमचिन्ह बना दिये, जो आज भी प्रेमी युगल के लिए यह प्रेम प्रतीक के रूप में प्रेरणा के स्रोत हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र से 5 किलोमीटर की दूरी पर मारकुंडी पहाड़ पर उक्त वीर लोरिक पत्थर आज भी जीता जागता लोरिक मंजरी के प्रेम का मिसाल के रूप में कायम है। सोननदी रक्त प्रवाह का एवं नरमुंड पहाड़ आज भी वीर लोरिक एवं राजा मोहगत के युद्ध का प्रतीक जीवंत गाथा है। वीर लोरिक ने जमुनी कलारिन से संबंध स्थापित कर वीर देवसिया नामक पुत्र को जन्म दिया।

कहा जाता है कि चौमासा पातालपुरी के अगिया कोयलिया से सतिया का सोहगैली प्राप्त कर वीर लोरिक पर सवार होकर मां दुर्गा मृत्युलोक ले जाते हैं।

इनका जन्मतिथि एवं निधन तिथि अस्पष्ट है। कोई विद्वान ईसा पूर्व पांचवी सदी तथा कोई विद्वान 10 वीं शताब्दी तो कोई 1106-1167 बताते हैं। हालांकि 8 अप्रैल को वीर लोरिक का जयंती पूरे देश में मनाई जाती है।

आज भी वीर लोरिक के सुप्रसिद्ध बहुचर्चित लोकगाथा लोककथा लोकगीत लोकनृत्य के माध्यम से वीरगाथा का गुणगान किया जाता है। बाहुबली फिल्म का कई दृश्य वीर लोरिक के जीवनी पर आधारित है।

बिहार प्रदेश पंच सरपंच संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष जिला अध्यक्ष किरण देव यादव ने कहा कि यदुकुल के वंशजों को वीर लोरिक के जीवनी व्यक्तित्व कृतित्व से सीख लेने की जरूरत है तथा इनके गाथा को जन जन तक पहुंचाने का अपील किया।

कार्यक्रम में डॉ कमल किशोर यादव, मधुबाला, धर्मेंद्र कुमार उमेश, दानवीर यादव रामचंद्र यादव पंकज यादव विष्णु देव यादव पिंटू यादव अमित यादव दिनेश यादव रामविलास यादव नृपेंद्र यादव आदि ने वीर लोरिक को याद किए तथा उनकी वीरता की परिचर्चा किये।

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