विष्णु यज्ञ : पर्यावरण शुद्धि का का है एकमात्र उपाय - देवराहा शिवनाथ दास

विष्णु यज्ञ : पर्यावरण शुद्धि का का है एकमात्र उपाय - देवराहा शिवनाथ दास 



आलमनगर में होगा विष्णु महायज्ञ 14 जून से 19 जून तक 


अयोध्या से वापस आने पर बाबा शिवनाथ दास का भक्तों ने किया स्वागत, लिया आशीर्वाद 


Arvind Verma


खगड़िया।



 अयोध्या यात्रा से वापस आने पर खगड़िया जिला मुख्यालय स्थित विद्याधार मुहल्ले में ध्रुव कुमार के आवास पर देवराहा संत शिवनाथ दास जी महाराज ने अपने भक्त जनों के बीच मीडिया से कहा मधेपुरा जिलांतर्गत आलमनगर में आगामी 14 से 19 मई तक विष्णु महायज्ञ होने जा रहा है, इसी सिलसिले में वहां जा रहा हूं, जहां महायज्ञ  सफलता के लिए झंडा गडूंगा। बाबा शिवनाथ दास जी महाराज ने कहा कलियुग में ईश्वर की भक्ति, भजन व कीर्तन करने से मन में शांति का वातावरण पैदा होता है। आगे उन्होंने कहा आज आवश्यकता है अपने आपको आध्यात्म की तरफ अग्रसर करें, उससे अपना, परिवार का, राज्य का और देश का कल्याण होगा। बाबा शिवनाथ दास महाराज ने कहा यज्ञ शब्द यज व धातु से सिद्ध होता है। इसका अर्थ है देव पूजा, संगतिकरण और दान। संसार के सभी श्रेष्ठकर्म यज्ञ कहे जाते हैं। यज्ञ को अग्निहोत्र, देवयज्ञ, होम, हवन, अध्वर भी कहते हैं। लोग जानते हैं कि दुर्गंधयुक्त वायु और जल से रोग, रोग से प्राणियों को दुख, सुगंधित वायु और जल से आरोग्य व रोग के नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है। जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है। उन्होंने कहा  अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होकर व फैलकर वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गंध की निवृत्ति करता है। अग्निहोत्र से वायु, वृष्टि, जल की शुद्धि होकर औषधियां शुद्ध होती हैं। शुद्ध वायु का श्वास स्पर्श, खान-पान से आरोग्य, बुद्धि, बल व पराक्रम बढ़ता है। इसे देवयज्ञ भी कहते हैं क्योंकि यह वायु आदि पदार्थों को दिव्य कर देता है। कहा कि परोपकार की सर्वोत्तम विधि हमें यज्ञ से सीखनी चाहिए। जो हवन सामग्री की आहूति दी जाती है उसकी सुगंध वायु के माध्यम से अनेक प्राणियों तक पहुंचती है। वे उसकी सुगंध से आनंद अनुभव करते हैं। यज्ञकर्ता भी अपने सत्कर्म से सुख अनुभव करते हैं। सुगंध प्राप्त करनेवाले व्यक्ति याज्ञिक को नहीं जानते और न ही याज्ञिक उन्हें जानता है फिर भी परोपकार हो रहा है। वह भी निष्काम रूप से। यज्ञ में चार प्रकार के हव्य पदार्थ डाले जाते हैं। सुगंधित केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावित्री आदि इसमें शामिल हैं। मलमूत्र के विसर्जन, पदार्थों के गलने-सड़ने, श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया, धूम्रपान, कल-कारखानों, वाहनों, भट्ठों से निकलनेवाला धुआं, संयंत्रों के प्रदूषित जल, रसायन तत्व एवं अपशिष्ट पदार्थो आदि से फैलनेवाले प्रदूषण के लिए मानव स्वयं ही उत्तरदायी है। अत: उसका निवारण करना भी उसी का कर्तव्य है। बाबा शिवनाथ दास ने कहा वस्तुत: पर्यावरण को शुद्ध बनाने का एकमात्र उपाय यज्ञ है। यज्ञ प्रकृति के निकट रहने का साधन है। रोग-नाशक औषधियों से किया यज्ञ रोग निवारण वातावरण को प्रदूषण से मुक्त करके स्वस्थ रहने में सहायक होता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी परीक्षण करके यज्ञ द्वारा वायु की शुद्धि होकर रोग निवारण की इस वैदिक मान्यता को स्वीकार किया है। प्राय: लोगों का विचार है कि यज्ञ में डाले गए घृत आदि पदार्थ व्यर्थ ही चले जाते हैं परंतु उनका यह विचार ठीक नहीं है। विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता अपितु उसका रूप बदलता है। अत: यज्ञ करते हुए बड़े प्रेम से वेदमंत्र बोलकर आहूति दें जिससे मन शुद्ध, पवित्र और निर्मल बन जाए। प्रदूषण समाप्त हो जाए। जनता खुशहाल हो व विश्व का कल्याण हो।बाबा शिवनाथ दास जी महाराज का स्वागत कर आशीर्वाद प्राप्त करने वालों में प्रमुख थे अनिरुद्ध जालान, ध्रुव कुमार, डॉ अरविन्द वर्मा, संजीव कुमार, संजीव सिंह, राम दास, सुरेन्द्र चौधरी, हीरा लाल, उपासना देवी, बेबो कुमारी तथा सदानंद साह आदि।

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