छद्म, अंधभक्त, पत्रकार के वेष में अपराधियों, भगवा गुजराती गैंग, भाड़े का टट्टू, बिकाऊ भ्रष्ट दलाल, पालतू पत्तलकार से सावधान।
यूपी घटना के माध्यम से पत्रकार सह अपराधी से डरने की बनाई जा रही है माहौल, ताकि पत्रकार से दूरी बनाए राजनेता
फासीवादी पूंजीवादी शक्ति द्वारा सच्ची पत्रकारिता को बदनाम कर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को समाप्त करने की साजिश के विरुद्ध भंडाफोड़ कर एकजुट हो संघर्ष तेज करें - किरण देव यादव।
कानून द्वारा संरक्षित पिता पुत्र को हत्या के साथ पत्रकारिता की भी की गई हत्या।
खगड़िया
अखिल भारतीय मिशन पत्रकार संघ, ऐम्पा के राष्ट्रीय संरक्षक संस्थापक अध्यक्ष किरण देव यादव ने कहा कि यूपी में अतीक अहमद एवं उनके पुत्र की हत्या पत्रकार के भेष में अपराधियों द्वारा करने से स्पष्ट हो गई है कि सच्ची पत्रकारिता को बदनाम करने की गंभीर साजिश की जा रही है ताकि नेता गण पत्रकार सह अपराधी से डरे एवं प्रेस वार्ता नहीं करावे, पत्रकार को अपने घर नहीं बुलावे। देश में पत्रकारिता समाप्ति के कगार पर है । गुजराती गैंग समेत तमाम दक्षिणपंथी पार्टियां , सांप्रदायिक दल बिल्कुल डबल रोल करके मूल पत्रकारिता को समाप्त कर रहे हैं। पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं ।
उन लोगों ने पत्रकारों को पालतू बनाकर अपना पिट्टू बना लिया है। गुलाम नौकर बना लिया है। और अपने पक्ष में ही झूठी खबरें लिखवाते और प्रसारित करवाते हैं। झूठी खबरें प्लांट कराते ,टीवी पर दिखवाते हैं। दूसरी ओर उन्हीं को बदनाम भी करते हैं।
नौ साल से पैसे देकर इनको खरीद लिया। सभी प्रकाशन समूहों और टीवी मालिकों को खरीद लिया । टीवी चैनलों को खरीद लिया । लगातार झूठी खबर दिखाकर जनता को मूर्ख बनाते रहे। उनका ब्रेनवाश करते रहे।
अपने महा घोटाले को छुपाते रहे । 86 लाख करोड़ से अधिक की जबरदस्त लूटपाट भी कर ली। लेकिन बिकाऊ मीडिया ने एक शब्द नहीं बताया।
अब इसी पार्टी , इसी गैंग ने पत्रकारिता को बदनाम करने की मुहिम भी छेड़ दी है। अतीक अहमद एवं उसके भाई की हत्या तो पुलिस तथा भगवा गैंग किसी भी रूप में करा सकता था, लेकिन उसने सारी प्लानिंग पत्रकारिता के प्लॉट पर ही रची ।
पूरी साजिश पत्रकारिता को बदनाम करने के नियत से रची गई । एक तीर से दो निशाने लगाए। अतीक को भी मरवाया और पत्रकारिता को भी मरवा दिया। उसने हत्यारों को पत्रकार रूप में भेजा।
ताकि भविष्य में पत्रकारों की रही सही प्रतिष्ठा भी खत्म हो जाए । आम जनता तथा सभी राजनेता पत्रकारों पर भरोसा करना छोड़ दें, उनको शक की निगाह से देखने लगे। उनको गुंडे बदमाश , लफंगा के रूप में देखने लगें। उनको अपने घर बुलाने में डरने लगें।
प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से घबराने रखें लगे क्योंकि मुख्य मदारी , प्रधान अडानी सेवक तो कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस करता नहीं है ।
अन्य लोग ही मजबूरी में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं। क्योंकि संसद और विधानसभाओं में बोलने की इजाजत नहीं है। सवाल उठाने की इजाजत नहीं है। संसद म्यूट भी हो जाता है। माइक बंद हो जाता है ।
बाहर पिटाई भी होती है। वैसे लोग ही राह चलते पत्रकारों को बाइट देने लगते हैं। अब वे लोग अब पत्रकार वार्ता आयोजित करने से डरने लगे लगेंगे। क्योंकि गुजराती भगवा गैंग उनके पत्रकार वार्ता में भी अपने पालतू पशु पत्रकारों तथा ऐसे रूप धारी हत्यारों को भेज सकता है ।
वहां पर मारपीट हंगामा करा सकता है। गोली बम चलाना , भगदड़ मचा सकता है। ऐसे प्रायोजित कांड कराना इनके दाएं हाथ का खेल है।
दुख की बात यह है कि पत्रकारों के वेश में इन लोगों ने इतनी बड़ी वारदात को अंजाम देकर पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट कर दिया है।
ये अब सारा काम पत्रकारों के भेष में भेजे गए अपराधियों से करवाएंगे । तब खूब बदनामी होगी। लोग पत्रकारों को बुलाने से भी डरने लगेंगे। इसी की आड़ में वह तमाम तरह की असली पत्रकारिता पर भी रोक लगा देंगे।
घटनास्थल पर वास्तविक पत्रकारों छायाकारों, टेलीविजन कैमरामैन को भी जाने से रोक लगा देंगे । उनको बदनाम करने की मुहिम को इन लोगों ने शुरू ही कर दी है ।
9 साल से बिकाऊ दलाल पत्रकारिता करवा के आज की पत्रकार पीढ़ी को वे अप्रासंगिक तथा फालतू घोषित करवा चुके हैं।
जनता को आज के कोई भी पत्रकार, कोई अच्छी खोजी तथ्यपरक न्यूज़ तो देते नहीं है। इसलिए जनता इनको खुद पसंद नहीं करती है ।
आने वाले दिनों में संप्रदायिक फासिस्ट दंगाई लोग बची खुची ओरिजिनल पत्रकारिता को भी देश से समाप्त कर देंगे, क्योंकि पूरे देश में पत्रकारिता के खिलाफ माहौल बन जाएगा। वास्तव में, मरी हुई भ्रष्ट पत्रकारिता के खिलाफ घोर माहौल तो अभी भी बना हुआ है।
पत्रकारिता को बदनाम करने का जबरदस्त दुष्चक्र की शुरुआत हो चुकी है। आम जनता को इस स्थिति से सावधान रहना होगा ।
क्योंकि ओरिजिनल पत्रकारिता तो देश के लिए जरूरी है। लेकिन वर्तमान वर्तमान सत्तारूढ़ दल, भगवा गैंग, लुटेरे धन्ना सेठ, पैसे वाले भ्रष्ट बनिए और सफेद पोश अपराधियों का सिंडिकेट तमाम असली पत्रकारिता को जड़ से उखाड़ने को आमादा है।
तथाकथित मुख्यधारा की गोदी मीडिया में काम करने वाले मुट्ठी भर पत्रकारों, सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ स्वतंत्र पत्रकारों को अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अंतिम लड़ाई लड़नी होगी, क्योंकि फासीवादी लोग उनको गैरजरूरी करार देकर उनके खिलाफ घृणा का माहौल बना रहे हैं।
उससे आने वाले दिनों में उनकी रोजी-रोटी चलनी मुश्किल हो जाएगी । अब इन लोगों ने नया आईटी एक्ट ला दिया है । अब पत्रकार किस विषय पर लिखेंगे, कौन सी चीज दिखाएंगे ।
क्योंकि कोई भी चीज राष्ट्रवाद और देश की सुरक्षा के नाम पर बंद करा दी जाएगी । लगभग 40 प्रतिशत जनता का ब्रेनवाश हो चुका है । उसकी सोचने समझने की शक्ति , विवेक खत्म हो गई है । वे गुलाम और अंधभक्त की श्रेणी में नौ साल से हैं ।
वह तो अपने मालिक के हर फैसले पर ताली बजाएंगे। हर गोलीबारी, हर शूटआउट, मारकाट, दंगे फसाद पर ताली बजाएंगे। जैसा वे अभी कर भी रहे हैं।
इसलिए मुख्यधारा के असली पत्रकारों को 40 प्रतिशत मतिशून्य मूर्ख जनता से अपने को बचाने की लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी ।
आज पत्रकारों को एकजुट होकर इस चुनौती को स्वीकार करें सच्ची पत्रकारिता के माध्यम से आम जनता का सवाल और फासीवादी पूंजीवादी सरकार के द्वारा की जा रही घिनौनी षड्यंत्र का पोल खोलने की भूमिका पत्रकारों को करने की जरूरत है जो समय की मांग है। चुंकि पत्रकारिता को भी अपराधी बना दिया गया है। पत्रकार को सचेत सावधान होकर संघर्ष करने की जरूरत है।


